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PRAGATI PATHIK SOCIETY

Sun, Apr 19, 2015

4/18/2015

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।।ॐ।।
सुप्रभातम भारतम्
��‪#‎आज‬ का पंचांग

तिथि...................प्रथम
वार...................रविवार

कलियुगाब्द.........५११७
विक्रम संवत्........२०७२
ऋतु...................बसंत
मास..................वैशाख
पक्ष...................शुक्ल
नक्षत्र................अश्विनी
योग..................विषकम्भ
करण .................किन्स्तुघन
सूर्य राशि ............मेष
चन्द्र राशि ...........मेष
राहुकाल .............17:08- 18:45
अभिजीतमुहूर्त ....11:54- 12:46
सूर्योदय ..............05:55
सूर्यास्त ..............18:45
चंद्रोदय..............06:13
तिथि विशेष ........चन्द्र दर्शन

१९   अप्रैल  सन २०१५ ईस्वी

��*आज का दिन सभी के लिए मंगलमय हो।



�� #आज का विचार -
मन अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है।
---श्रीमद्भागवत गीता ��




�� #आरोग्यं--
स्वास्थ्यवर्धक एवं आरोग्य के लिए - "ॐ"

ॐ, ओउम् तीन अक्षरों से बना है।
अ उ म् ।
"अ" का अर्थ है उत्पन्न होना,

"उ" का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास,

"म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् "ब्रह्मलीन" हो जाना।

ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है।

ॐ का उच्चारण शारीरिक लाभ प्रदान करता है।


��
ॐ कैसे है स्वास्थ्यवर्द्धक और अपनाएं आरोग्य के लिए ॐ के उच्चारण का मार्ग...

✏1. ॐ और थायराॅयडः-
ॐ का उच्‍चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो थायरायड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।

✏2. ॐ और घबराहटः-
अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं।

✏3. ॐ और तनावः-
यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है।

✏4. ॐ और खून का प्रवाहः-
यह हृदय और ख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है।

✏5. ॐ और पाचनः-
ॐ के उच्चारण से पाचन शक्ति तेज़ होती है।

✏6. ॐ लाए स्फूर्तिः-
इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है।

✏7. ॐ और थकान:-
थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं।

✏8. ॐ और नींदः-
नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है। रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चिंत नींद आएगी।

✏9. ॐ और फेफड़े:-
कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मज़बूती आती है।

✏10. ॐ और रीढ़ की हड्डी:-
ॐ के पहले शब्‍द का उच्‍चारण करने से कंपन पैदा होती है। इन कंपन से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होती है और इसकी क्षमता बढ़ जाती है।

✏11. ॐ दूर करे तनावः-
ॐ का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनाव-रहित हो जाता है।




��#‪‎योग‬ --
नटराजासन

'नटराज' शिव के 'तांडव नृत्य' का प्रतीक है। नटराज का यह नृत्य विश्व की पांच महान क्रियाओं का निर्देशक है- सृष्टि, स्थिति, प्रलय, तिरोभाव (अदृश्य, अंतर्हित) और अनुग्रह। शिव की नटराज की मूर्ति में धर्म, शास्त्र और कला का अनूठा संगम है। उनकी इसी नृत्य मुद्रा पर एक आसन का नाम है- नटराज आसन (नटराजासन)।

नटराज आसन की विधि :
सबसे पहले सीधे खड़े हो जाइए। फिर दाएं पैर को पीछे ले जाकर जमीन से ऊपर उठाएं। इसके बाद उसे घुटने से मोड़कर उस पैर के पंजे को दाएं हाथ से पकड़ें।

दाएं हाथ से दाएं पैर को अधिकतम ऊपर की ओर उठाने का प्रयास करें। बाएं हाथ को सामने की ओर ऊपर उठाएं। इस दौरान सिर को ऊपर की ओर उठा कर रखें।

महज तीस सेकंड के बाद वापस पूर्व स्थिति में आ जाएं। फिर इसी क्रिया को दूसरे पैर अर्थात बाएं पैर को पीछे ले जाकर जमीन से ऊपर उठाकर करें।

हालांकि यह क्रिया चित्र में दिखाए गई नटराज की मुद्रा से भिन्न है लेकिन यह भी नटराज आसन ही है। आप चित्र में दिखाई मुद्रा अनुसार भी कर सकते हैं तांडव नृत्य की ऐसी कई मुद्राएं हैं।



❓#आज का प्रश्न:-
"वस्तु अर्पित करते समय उसके मूल्य की अपेक्षा उस समय रखा गया भाव महत्त्वपूर्ण है !
"गुरु _________जी"


      ‘यमुना के पावन तटपर के गुरु जी  अपने अमृत वचनों द्वारा श्रोतागणों के हृदय प्रफुल्लित कर रहे थे। सत्संग समाप्त होने पर एक के पश्चात एक सर्व श्रोतागण गुरु चरणों में दक्षिणा रखने लगे। इस सत्संग को राजा रघुनाथसिंह भी उपस्थित थे। उन्होंने भी गुरुचरणों में रत्नजडित सोने के कंगन रख दिए।

       गुरु जी वह कंगन देखकर राजा से बोले, ‘‘रघुनाथसिंह जी, सूर्य के प्रकाश में यह कंगन कितने चमक रहे हैं ! मुझे ऐसा लगता है कि इन्हें पानी में धोने पर उनकी चमक और अधिक बढेगी।’’ ऐसा कहते हुए गुरु जी अपने आसन से उठे और यमुनाजी में एक कंगन धोने लगे। तब एक कंगन पानी में गिर गया।

       राजा रघुनाथसिंह के मुख से स्वर निकला, ‘‘अरे ! कितना अमूल्य कंगन आपके हाथो से गिरा ! त्याच्यासाठी सुनार ने कितने परिश्रम से उसे बनवाया था। उसके लिए विपुल व्यय भी किया था।’’ ऐसा कहते हुए राजा रघुनाथसिंह स्वयं कंगन ढूंढने के लिए यमुना जी में उतरे। बहुत प्रयास करने पर भी कंगन उनके हाथ नहीं लगा। इसलिए बाहर आकर उन्होंने गुरुजी से पूछा, ‘‘कृपा कर मुझे यह बताऐंगे कि कंगन कहां गिर गए थे ?’’

      जब राजा रघुनाथ सिंह जी दक्षिणा अर्पित करने के लिए आए थे तभी गुरुजी ने ताड लिया था कि अपने धन-वैभव के प्रदर्शन के लिए ही राजा कंगन लेकर आए हैं। इसलिए हाथ में थामा दूसरा कंगन भी यमुना जी में फेंकते हुए वे बोले, ‘‘जहां यह कंगन गिरेगा, वही पहला कंगन गिरा हुआ होगा।’’ यह सुनकर रघुनाथसिंह जी का अहंकार न्यून हो गया और वे बिना कुछ बोले अपने आसन पर जाकर विराजित हुए।

     गुरुजी चलते-चलते श्रोतागणों के अंतिम पंक्ति में एक वृद्ध महिला के पास आए और बोले, ‘‘मांजी, मेरे लिए क्या लार्इं है ?’’ कुछ क्षण के लिए वह महिला विश्वास ही नहीं कर पार्इं की साक्षात गुरुजी उसके पास आए है ! गुरु जीने पुनश्च कहा, ‘‘मांजी, आपने लाई हुई वस्तु लेकर मुझे आनंद होगा।’’ मांजी अत्यंत संकोच से बोली, ‘‘मैंने लाई हुई वस्तुएं अत्यंत तुच्छ है। आप हमारे लिए सत्संग आयोजित करते है। बोलने से आपके गले को कष्ट होते होंगे । ऐसा विचार कर मैंने शक्कर डालकर थोडा गाय का दूध लाया है और फल भी लाएं है।

       सत्संग के पूर्व थोडा दूध पिएंगे तो आपको अच्छा लगेगा। आपके चरणों में यह छोटा सा उपहार अर्पित करने की इच्छा मुझे सत्संग का प्रारंभ करने पूर्व ही हुई थी। परंतु आपके चरणों में अमूल्य उपहार अर्पित होने लगे ! उनमें भी सोने के कंगन अर्पित होते हुए देख मुझे मेरा उपहार अत्यंत सामान्य लगा।’’ मां जी की ओर प्रेमपूर्वक देखते हुए गुरु  बोले, ‘‘मेरे सामने यह जो अमूल्य वस्तुओं का ढेर लगा है उनमें सोने-चांदी के अलंकार भी अवश्य होंगे; परंतु मां जी, आपने लाए हुए दूध में जो मिठास है, वह इन वस्तुओं में नहीं !’’ इतना कहकर वे मां जी के हाथ का कटोरा लेकर दूध पिने लगे। उसके पश्चात फलों की टोकरी भी ली। अपनी अर्पित वस्तुएं गुरुजी ने स्वीकार की यह देख मां जी के नयन भर आए।

       गुरु पुनश्च अपने आसन पर जाकर विराजित हुए और बोले, ‘‘उपहार का महत्त्व उसके मूल्य से निश्चित नहीं होता, अपितु उस समय जो भाव रखा है, उससे निश्चित होता है ! आज यह दूध पीकर मुझे जो आनंद मिला है, उसके सामने तो स्वर्ग सुख भी घास के तिनके के समान है ! उसमें माता का वात्सल्य था। मां जी, आपके जैसे भक्त ही धर्म का गौरव है। भले ही आप मेरा गुरु कहकर सम्मान कर रहीं है; परंतु मेरे लिए तो आप ही पूजनीय है ।’’

प्रश्न संख्या ७०:- सिखों के दसवें व अंतिम गुरु जी का क्या नाम है ?

कल के प्रश्न संख्या ६९ का उत्तर है :-
"आचार्य विनोभा भावे"


☀।। वंदे  मातरम्।।
।।भारत माता की जय।।☀
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