।।ॐ।।
सुप्रभातम्
☀आज का पंचांग
तिथि.....................तृतीया
वार....................मंगलवार
कलियुगाब्द.........५११७
विक्रम संवत्........२०७२
शक् सम्वत्..........१९३७
ऋतु....................बसंत
मास..................वैशाख
पक्ष....................शुक्ल
नक्षत्र................कृतिका
योग.................सौभाग्य
अक्षय तृतीय आखा तीज
२१ अप्रैल २०१५ ईस्वी
आज का दिन सभी के लिए मगलमय हो।
❓आज का प्रश्न:-
"रानी द्रोपदी बाई"
रानी द्रोपदी बाई निःसंदेह भारत की एक प्रसिद्ध वीरांगना थीं जिनके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है लेकिन इतिहास में रानी द्रोपदी बाई का भी महत्वपूर्ण स्थान है।
इन्होंने कभी भी सरकार की ख़ुशामद नहीं की। एक छोटी सी रियासत धार की रानी द्रौपदी बाई ने अपने कर्म से यह सिद्ध कर दिया कि....
भारतीय ललनाओं की धमनियों में भी रणचंडी और दुर्गा का रक्त ही प्रवाहित होता है। रानी द्रौपदी बाई धार क्षेत्र की क्रांति की सूत्रधार थी।
ब्रितानी उनसे भयभीत थे। धार मध्य भारत का एक छोटा-सा राज्य था। 22 मई 1857 को धार के राजा का देहावसान हो गया।
आनन्दराव बाल साहब को उन्होंने मरने के एक दिन पहले गोद लिया। वे उनके छोटे भाई थे। राजा की बड़ी रानी द्रौपदी बाई ने ही राज्य भार सँभाला, कारण आनन्दराव बाला साहब, नाबालिग़ थे।
अन्य राजवंशों के विपरीत ब्रितानियों ने धार के अल्पव्यस्क राजा आनन्दराव को मान्यता प्रदान कर दी। उन्हें आशा थी कि ऐसा करने से धार राज्य उनका विरोध नहीं करेगा,
⛳ लेकिन रानी द्रौपदी के ह्रदय में तो क्रांति की ज्वाला धधक रही थी। रानी ने कार्य-भार सँभालते ही समस्त धार क्षेत्र में क्रांति की लपटें प्रचंड रू प से फैलने लगीं।
रानी द्रौपदी बाई ने रामचंद्र बापूजी को अपना दीवान नियुक्त किया। बापूजी ने सदा उनका समर्थन किया इन दोनों ने 1857 की क्रांति में ब्रितानियों का विरोध किया।
क्रांतिकारियों की हर संभव सहायता रानी ने की। सेना में अरब, अफ़ग़ान आदि सभी वर्ग के लोगों को नियुक्त किया।
अँग्रेज़ नहीं चाहते कि रानी देशी वेतन भोगी सैनिकों की नियुक्ति करें। रानी ने उनकी इच्छा की कोई चिंता न की।
रानी के भाई भीम राव भोंसले भी देशभक्त थे। धार के सैनिकों ने अमझेरा राज्य के सैनिकों के साथ मिलकर सरदार पुर पर आक्रमण कर दिया ।
रानी के भाई भीम राव ने क्रांतिकारियों का स्वागत किया। रानी ने लूट में लाए गए तीन तोपों को भी अपने राजमहल में रख लिया।
31 अगस्त को धार के किले पर क्रांतिकारियों का अधिकार हो गया। क्रांतिकारियों को रानी की ओर से पूर्ण समर्थन दिया गया था।
अँग्रेज़ कर्नल डयूरेड ने रानी के कार्यों का विरोध करते हुए लिखा कि आगे की समस्त कार्य वाई का उत्तरदायित्व उन पर होगा।
ब्रिटिश सैनिकों ने 22 अक्टूबर 1857 को धार का क़िला घेर लिया। यह क़िला मैदान से 30 फ़िट ऊँचाई पर लाल पत्थर से बना था।
क़िले के चारों ओर 14 ग़ोल तथा दो चौकोर बुर्ज बने हुए थे। क्रांतिकारियों ने उनका डटकर मुक़ाबला किया। ब्रितनियों को आशा थी कि वे शीघ्र आत्म सर्मपण कर देंगे पर ऐसा न हुआ।
24 से 30 अक्टूबर तक संघर्ष चलता रहा। क़िले की दीवार में दरार पड़ने के कारण ब्रितानी सैनिक क़िले में घुस गए। क्रांतिकारी सैनिक गुप्त रास्ते से निकल भागे।
कर्नल ड़्यूरेन्ड़ तो पहले से ही रानी का विरोधी था। उसने क़िले को ध्वस्त कर दिया। धार राज्य को ज़ब्त कर लिया गया। रामचंद्र बापू को दीवान बना दिया गया।
1860 में धार का राज्य पुनः अल्पव्यस्क राजा को व्यस्कता प्राप्त करने पर सौंप दिया गया। रानी द्रौपदी बाई धार क्षेत्र के क्रांतिकारियों को प्रेरणा देती रही।
उन्होंने बहादुरी के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का विरोध किया। यह अपने आप में कम नहीं थी निःसंदेह रानी द्रौपदी बाई एक प्रमुख क्रांति की अग्रदूत रही है।
❓आज का प्रश्न :-
अंग्रेजों की राज करने की एक नीति क्या थी वो बताएँ ?
कल के प्रश्न का उत्तर है :-
"मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी महाराज देवराज "विष्णु" के अवतार थे।"
आरोग्यम् ...
"क्या आपको करेला खाने का सही तरीका आता है ?"
हमारे शरीर में छ: रस चाहिए - मीठा, खट्टा, खारा, तीखा, काषाय और कड़वा | पांच रस, मीठा/खट्टा/खारा/तीखा/काषाय तो बहुत खाते हैं लेकिन "कड़वा" नहीं खाते |
कड़वा प्रकृति ने "करेला" बनाया है लेकिन हम करेले को निचोड़ के उस की कड़वाहट निकाल देते हैं |
करेले का छिलका नहीं उतारना चाहिए और उसका कड़वा रस नहीं निकालना चाहिए | हफ्ते में, पन्द्रह दिन में एक दिन करेला खाना तबियत के लिए अच्छा है |
करेले के फायदे....
करेले का स्वाद भले ही कड़वा हो, लेकिन सेहत के लिहाज से यह बहुत फायदेमंद होता है। करेले में अन्य सब्जी या फल की तुलना में ज्यादा औषधीय गुण पाये जाते हैं।
करेला खुश्क तासीर वाली सब्जी है। यह खाने के बाद आसानी से पच जाता है। करेले में "फास्फोरस" पाया जाता है जिससे कफ की शिकायत दूर होती है।
योग-आसन -- "चक्रासन"
चक्र का अर्थ है पहिया। इस आसन में व्यक्ति की आकृति पहिये के समान नजर आती है इसीलिए इसे चक्रासन कहते हैं। यह आसन भी उर्ध्व धनुरासन के समान माना गया है।
अवधि/दोहराव :---चक्रासन को सुविधानुसार 30 सेकंड से एक मिनट तक किया जा सकता है। इसे दो या तीन बार दोहरा सकते हैं।
☀चक्रासन की विधि :--
सर्वप्रथम शवासन में लेट जाएं। फिर घुटनों को मोड़कर, तलवों को भूमि पर अच्छे से जमाते हुए एड़ियों को नितंबों से लगाएं।
कोहनियों को मोड़ते हुए हाथों की हथेलियों को कंधों के पीछे थोड़े अंतर पर रखें। इस स्थिति में कोहनियां और घुटनें ऊपर की ओर रहते हैं।
श्वास अंदर भरकर तलवों और हथेलियों के बल पर कमर-पेट और छाती को आकाश की ओर उठाएं और सिर को कमर की ओर ले जाए।
फिर धीरे-धीरे हाथ और पैरों के पंजों को समीप लाने का प्रयास करें, इससे शरीर की चक्र जैसी आकृति बन जाएगी।
अब धीरे-धीरे श्वास छोड़ते हुए शरीर को ढीला कर, हाथ-पैरों के पंजों को दूर करते हुए कमर और कंधों को भूमि पर टिका दें। और पुन: शवासन की स्थिति में लौट आएं।
आपके स्वस्थ, उज्ज्वल और यशस्वी भविष्य की शुभम् कामनाएँ !!
सुप्रभातम्
☀आज का पंचांग
तिथि.....................तृतीया
वार....................मंगलवार
कलियुगाब्द.........५११७
विक्रम संवत्........२०७२
शक् सम्वत्..........१९३७
ऋतु....................बसंत
मास..................वैशाख
पक्ष....................शुक्ल
नक्षत्र................कृतिका
योग.................सौभाग्य
अक्षय तृतीय आखा तीज
२१ अप्रैल २०१५ ईस्वी
आज का दिन सभी के लिए मगलमय हो।
❓आज का प्रश्न:-
"रानी द्रोपदी बाई"
रानी द्रोपदी बाई निःसंदेह भारत की एक प्रसिद्ध वीरांगना थीं जिनके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है लेकिन इतिहास में रानी द्रोपदी बाई का भी महत्वपूर्ण स्थान है।
इन्होंने कभी भी सरकार की ख़ुशामद नहीं की। एक छोटी सी रियासत धार की रानी द्रौपदी बाई ने अपने कर्म से यह सिद्ध कर दिया कि....
भारतीय ललनाओं की धमनियों में भी रणचंडी और दुर्गा का रक्त ही प्रवाहित होता है। रानी द्रौपदी बाई धार क्षेत्र की क्रांति की सूत्रधार थी।
ब्रितानी उनसे भयभीत थे। धार मध्य भारत का एक छोटा-सा राज्य था। 22 मई 1857 को धार के राजा का देहावसान हो गया।
आनन्दराव बाल साहब को उन्होंने मरने के एक दिन पहले गोद लिया। वे उनके छोटे भाई थे। राजा की बड़ी रानी द्रौपदी बाई ने ही राज्य भार सँभाला, कारण आनन्दराव बाला साहब, नाबालिग़ थे।
अन्य राजवंशों के विपरीत ब्रितानियों ने धार के अल्पव्यस्क राजा आनन्दराव को मान्यता प्रदान कर दी। उन्हें आशा थी कि ऐसा करने से धार राज्य उनका विरोध नहीं करेगा,
⛳ लेकिन रानी द्रौपदी के ह्रदय में तो क्रांति की ज्वाला धधक रही थी। रानी ने कार्य-भार सँभालते ही समस्त धार क्षेत्र में क्रांति की लपटें प्रचंड रू प से फैलने लगीं।
रानी द्रौपदी बाई ने रामचंद्र बापूजी को अपना दीवान नियुक्त किया। बापूजी ने सदा उनका समर्थन किया इन दोनों ने 1857 की क्रांति में ब्रितानियों का विरोध किया।
क्रांतिकारियों की हर संभव सहायता रानी ने की। सेना में अरब, अफ़ग़ान आदि सभी वर्ग के लोगों को नियुक्त किया।
अँग्रेज़ नहीं चाहते कि रानी देशी वेतन भोगी सैनिकों की नियुक्ति करें। रानी ने उनकी इच्छा की कोई चिंता न की।
रानी के भाई भीम राव भोंसले भी देशभक्त थे। धार के सैनिकों ने अमझेरा राज्य के सैनिकों के साथ मिलकर सरदार पुर पर आक्रमण कर दिया ।
रानी के भाई भीम राव ने क्रांतिकारियों का स्वागत किया। रानी ने लूट में लाए गए तीन तोपों को भी अपने राजमहल में रख लिया।
31 अगस्त को धार के किले पर क्रांतिकारियों का अधिकार हो गया। क्रांतिकारियों को रानी की ओर से पूर्ण समर्थन दिया गया था।
अँग्रेज़ कर्नल डयूरेड ने रानी के कार्यों का विरोध करते हुए लिखा कि आगे की समस्त कार्य वाई का उत्तरदायित्व उन पर होगा।
ब्रिटिश सैनिकों ने 22 अक्टूबर 1857 को धार का क़िला घेर लिया। यह क़िला मैदान से 30 फ़िट ऊँचाई पर लाल पत्थर से बना था।
क़िले के चारों ओर 14 ग़ोल तथा दो चौकोर बुर्ज बने हुए थे। क्रांतिकारियों ने उनका डटकर मुक़ाबला किया। ब्रितनियों को आशा थी कि वे शीघ्र आत्म सर्मपण कर देंगे पर ऐसा न हुआ।
24 से 30 अक्टूबर तक संघर्ष चलता रहा। क़िले की दीवार में दरार पड़ने के कारण ब्रितानी सैनिक क़िले में घुस गए। क्रांतिकारी सैनिक गुप्त रास्ते से निकल भागे।
कर्नल ड़्यूरेन्ड़ तो पहले से ही रानी का विरोधी था। उसने क़िले को ध्वस्त कर दिया। धार राज्य को ज़ब्त कर लिया गया। रामचंद्र बापू को दीवान बना दिया गया।
1860 में धार का राज्य पुनः अल्पव्यस्क राजा को व्यस्कता प्राप्त करने पर सौंप दिया गया। रानी द्रौपदी बाई धार क्षेत्र के क्रांतिकारियों को प्रेरणा देती रही।
उन्होंने बहादुरी के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का विरोध किया। यह अपने आप में कम नहीं थी निःसंदेह रानी द्रौपदी बाई एक प्रमुख क्रांति की अग्रदूत रही है।
❓आज का प्रश्न :-
अंग्रेजों की राज करने की एक नीति क्या थी वो बताएँ ?
कल के प्रश्न का उत्तर है :-
"मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी महाराज देवराज "विष्णु" के अवतार थे।"
आरोग्यम् ...
"क्या आपको करेला खाने का सही तरीका आता है ?"
हमारे शरीर में छ: रस चाहिए - मीठा, खट्टा, खारा, तीखा, काषाय और कड़वा | पांच रस, मीठा/खट्टा/खारा/तीखा/काषाय तो बहुत खाते हैं लेकिन "कड़वा" नहीं खाते |
कड़वा प्रकृति ने "करेला" बनाया है लेकिन हम करेले को निचोड़ के उस की कड़वाहट निकाल देते हैं |
करेले का छिलका नहीं उतारना चाहिए और उसका कड़वा रस नहीं निकालना चाहिए | हफ्ते में, पन्द्रह दिन में एक दिन करेला खाना तबियत के लिए अच्छा है |
करेले के फायदे....
करेले का स्वाद भले ही कड़वा हो, लेकिन सेहत के लिहाज से यह बहुत फायदेमंद होता है। करेले में अन्य सब्जी या फल की तुलना में ज्यादा औषधीय गुण पाये जाते हैं।
करेला खुश्क तासीर वाली सब्जी है। यह खाने के बाद आसानी से पच जाता है। करेले में "फास्फोरस" पाया जाता है जिससे कफ की शिकायत दूर होती है।
योग-आसन -- "चक्रासन"
चक्र का अर्थ है पहिया। इस आसन में व्यक्ति की आकृति पहिये के समान नजर आती है इसीलिए इसे चक्रासन कहते हैं। यह आसन भी उर्ध्व धनुरासन के समान माना गया है।
अवधि/दोहराव :---चक्रासन को सुविधानुसार 30 सेकंड से एक मिनट तक किया जा सकता है। इसे दो या तीन बार दोहरा सकते हैं।
☀चक्रासन की विधि :--
सर्वप्रथम शवासन में लेट जाएं। फिर घुटनों को मोड़कर, तलवों को भूमि पर अच्छे से जमाते हुए एड़ियों को नितंबों से लगाएं।
कोहनियों को मोड़ते हुए हाथों की हथेलियों को कंधों के पीछे थोड़े अंतर पर रखें। इस स्थिति में कोहनियां और घुटनें ऊपर की ओर रहते हैं।
श्वास अंदर भरकर तलवों और हथेलियों के बल पर कमर-पेट और छाती को आकाश की ओर उठाएं और सिर को कमर की ओर ले जाए।
फिर धीरे-धीरे हाथ और पैरों के पंजों को समीप लाने का प्रयास करें, इससे शरीर की चक्र जैसी आकृति बन जाएगी।
अब धीरे-धीरे श्वास छोड़ते हुए शरीर को ढीला कर, हाथ-पैरों के पंजों को दूर करते हुए कमर और कंधों को भूमि पर टिका दें। और पुन: शवासन की स्थिति में लौट आएं।
आपके स्वस्थ, उज्ज्वल और यशस्वी भविष्य की शुभम् कामनाएँ !!